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article written: mahendra verma
डाँ बी.आर. अम्बेडकर एक महाज्ञानी] ईमानदार किस्म के व्यक्ति थे। काफी मात्रा में दलित लोग
इनकी पूजा भी करते है।क्योंिक बाबा साहेब अम्बेडकर दलितों के मसीहा थे। डाँ बी.आर.
अम्बेडकर कोे बाबा साहेब नाम से भी पुकारा जाता है।बाबा साहेब एक दूरदर्शो] समाज सुधारक व संघर्षशील व्यक्ति थे।वह सत्य के परिचायक थे।
बाबा साहेब अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को
भारत के मध्य प्रदेश के महू शहर मे हुआ था।उनका जन्म अनूसूचित जाति महार में हुआ
था।उस समय दलितों के प्रति छुआ-छूत की भावना सामन्य वर्ग के लोगो में बहुत थी। इस
कारण कम उम्र में ही बाबा साहेब अम्बेडकर को भेदभाव व अपमान का सामना करना पड़ा
।उस समय दलितो को स्कूलों में पड़ने की इजाजद नही थी। भेदभाव इतना था कि इन्हे
कक्षा में सामन्य वर्ग के विद्यार्थियो के साथ बैठकर पढ़ाई करने की अनुमति नही
थी।यहाँ तक की अछूत भावना से ग्रस्त सिस्टम
दलितों को स्कूलों में प्रवेश नही देता था।बाबा साहेब अम्बेडकर बचपन से ही
महाज्ञानी थे।और इनकी पढ़ने में बहुत रूचि थी। इसलिये अपने पिता से जिद्द करके
इन्होने स्कूल में दाखिला लिया।
अछूत भावना से ग्रस्त अध्यापको ने इन्हें
कक्षा में बैठकर पढ़ने की अनुमति नही दी।इसलिये ज्यादातर वह कक्षा के दरवाजे के पास बोरी के नीचे बैठकर यह ब्लैकबोर्ड को दूर से निहार कर पढ़ा
करते थे। बाबा साहेब की बुद्वि इतनी त्रीव थी कि दूर से ही यह बड़ी आसानी से ब्लैक
बोर्ड पर लिखा सवाल समझ लेते थे। उस समय जातिवाद इतना व्याप्त था कि एक दलित को
स्कूल भी पैदल जाना पड़ता था।एक बार की बात है कि बाबा साहेब एक रिक्शे में बैठ गए
स्कूल जाने के लिए। मगर जाति पता लगने पर रिक्शे वाले ने इन्हें बीच में ही उतार
दिया व जाति के अभिसूचक शब्द से बाबा साहेब का अपमान भी करने लगा।
आज भी भारत देश का दुर्भाग्य यह है कि
अधिकंाश लोग जातिवाद के आधार पर ही वोट देते है।नेतागण जातिवाद का जाल बिछाकर जनता
से वोट लेते हैं।और फिर शुरू होता देश की पूरी जनता का शोषण।
बाबा साहेब अम्बेडकर छोटी सी उम्र में एक
मेधावी छात्र थे। उन्होने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त
की। उन्होने मुंबई में अपनी स्नानतक की डिग्री पूरी की, उसके बाद लन्दन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर
डिग्री प्राप्त की। उन्होने लन्दन में ग्रेज इन से कानून की डिग्री भी हासिल की।
बाबा साहेब आम्बेडकर का एक सच्चे समाज सेवक
थे।उन्होने समाज के उत्थान के लिये कई महत्वपूर्ण योगदान दिये। बाबा साहेब एक
अच्छे लेखक व वक्ता थे।वह जातिवाद के अनुसार किसी भी जाति के मनुष्य के शोषण के
खिलाफ थे। इन्होने मनुष्य के प्रति जाति के आधार पर एक दूसरे से भेदभाव को मिटाने
और सभी के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए अधिक प्रयास किया।
बाबा साहेब भारतीय संविधान के निर्माता थे।
और इन्होने ही संविधान के अन्तर्गत दलितो को आरक्षण की सुविधा दिलाई है।बाबा साहेब
के प्रयासों के कारण ही आज दलित सरकारी पदों पर आसीन है।बाबा साहेब का कहना था कि
शिक्षा एक ऐसा ज्ञान है जो आपसे कोई छीन नही सकता इसलिये शिक्षित बनों।शिक्षा से
समाज का बेड़पार है।
बाबा साहेब ने ऐसा संविधान लिखा जिससे भारत
देश की सम्पूर्ण जनता को लोकतन्त्र मिला। मगर आज भी हमें लोकतन्त्र के सही मायने
नही पता हम नेतागणों के बहकावे में आकर अपना वोट सही रूप से इस्तेमाल नही कर पाते।
बाबा साहेब अम्बेडकर महिलाआंे के अधिकारों
के भी हिमायती थे उन्होने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अथक
प्रयास किये। उन्होने बाल-विवाह को अनुचित बताया और उसके खिलाफ लड़ाई भी लड़ी। और
महिलाओं के शिक्षा और संपत्ति के अधिकार की वकालत की।उन्होने हिंन्दु कोड बिल के पारित
होने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,जिसने महिलओं को तलाक और विरासत में सपत्ति का अधिकार दिया।
शिक्षा के क्षेत्र में बाबा साहेब अम्बेडकर
ने महत्वपूर्ण योगदान दिया ।वह कहते थे कि शिक्षा ही सशक्तिकरण की कुंजी है।और
उन्होने शोषित दलित समाज को शिक्षा के माध्यम से जाग्रत किया। दलितो को स्कूल में
बैठकर पढ़ने का अवसर दिया। उन्होने बाँम्बे में पीपुल्स एजुकेशन सोसाईटी और डाँ.
आम्बेडकर काँलेज सहित कई शैक्षणिक संस्थानो की स्थापना की।बाबा साहेब ने अनुसूचित
जाति संघ की भी स्थापना की जिसने दलित समुदाय की शिक्षा और कल्याण को बढ़ावा देने
के लिए काम किया।
बाबा साहेब अम्बेडकर को भारतीय संविधान का
निर्माता,सामाजिक न्याय और समानता का चैम्पियन माना जाता है।दलितों
को समानता का अधिकार दिलाने में बाबा साहेब का महत्वपूर्ण योगदान है। बाबा साहेब
ने संघर्ष किया और ऐसे समय में उच्च शिक्षा प्राप्त की जब दलितो को पदानुक्रम में
सबसे निचली जातियों में से एक माना जाता था। बाबा साहेब ने कम उम्र में ही सत्य की
नींव को रखा और उस पर अमल किया।समाज में फैली कुरूतीयाँ जातिवाद छुआ छूत- अछूत
जैसी मानसिक बीमारीयों का बाबा साहेब ने खण्डन किया और दलित समाज को जीने के लिये
एक नई दिशा दी। दलितो को समाज के ठेेकेदारो की गुलामी से आजाद कराया और उन्हें
शिक्षित होकर जीवन यापन करने की शिक्षा दी।उस समय स्कूलों में दलित उच्च जाति
वालों के जग में पानी तक नही पी सकता था और न ही उनके साथ कक्षा में बैठकर पढ़
सकता था ऐसे समय में बाबा साहेब अम्बेडकर ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक मिसाल पैदा
की है।
जैसे-जैसे बाबा साहब व्यस्क होते गए समाज
में फैले जातिवाद की गहरी प्रकृति के विषय में अधिक जागरूक हो गए।उन्होने दलितो के
इतिहास का अवलोकन किया और दलित समुदाय का दमन और शोषण कैसे किया जाता था इस पर एक
गहरी रिसर्च की और उन्होने पाया कि एक दौड़ शुरू हुई जिसमे दलित व स्वर्ण थे दलितो
को रस्सियों से बाँन्ध दिया गया और स्वर्ण दौड़ में आगे बढ़ते गये और दलित शोषित
होते रहे। बाबा साहेब अम्बेडकर ने जब संविधान लिखा तो दलितो को आरक्षण की सीढ़ी दी
ताकि वह भी दौड़ में आगे निकल सके ।उनका मानना था कि दलितो को उनके अधिकारों से
वंचित रखा गया। और बुनियाादी मानवाधिकारों से भी दूर रखा गया। बाबा साहेब अपने
अधिकारों के प्रति लड़ने के लिए दृढ़ थे।उन्होने दलित अधिकारों के मुद्दे को उजागर
करने के लिए कई विरोध और प्रदर्शनों का आयोजन किया और दैनिक आधार पर उनके साथ होने
वाले अन्याय की ओंर ध्यान आकर्षित किया।
सत्य क्या है सत्य का सार यह ही है कि किसी
भी धर्म और जाति के मनुष्यों का यदि मनुवाद ,जातिवाद के आधार पर शोषण होगा तो समय का चक्र घूमकर
परिवर्तन करता है। जैसे शोषित वर्ग को आरक्षण देना, दलितो ंमें बाबा साहेब अम्बेकर जैसे अवतार महापुरूष का जन्म
होना। तो प्रकृति बलैन्स करती है सबको समान अधिकार देती है।क्योकि परमात्मा की नजर
में सब एक है। एक-दूसरे के प्रति भेदभाव करना केवल राजीनीति है। सत्ता करने की
नीति है।परिवर्तन सृष्टि का नियम है।
बाबा साहेब ने जातिवाद की बुराईयों और
सामाजिक सुधार की आवश्यकता के विषय में लोगो को शिक्षित करने के लिए अपने मंच का
इस्तेमाल किया और समाज सुधार के लिये आन्दोलन भी किये।
दलितो को समान अधिकार दिलाने के लिये बाबा
साहेब ने कई आन्दोलन किये और समाज के शक्तिशाली वर्गो के विरोध और प्रतिरोध का
सामना करना पड़ा ,जो मौजूदा सामाजिक
पदानुक्रम को बनाए रखने के लिए दृढ़ थे।धीरे-धीरे दलित समाज का उत्थान करते-करते
उनका बौद्व धर्म में रूपान्तरण हो गया।
सन् 1956
में बाबा साहेब ने हिन्दु धर्म को त्याग दिया और अपने
हजारों अनुयायियों के साथ बौद्व धर्म में परिवर्तित हो गये।इससे जातिवाद के खिलाफ
एक महत्वपूर्ण कदम माना गया।बाबा साहेब अपने अन्तिम समय तक दलितो को समान अधिकार
दिलाने के लिये संघर्षरत रहे। सन् 1956 में बाबा साहेब का देहान्त हो गया। जातिवाद के खिलाफ संघर्ष
में उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है।
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